देशद्रोही कौन -डा.विनायक सेन या देश के भ्रष्टलोग ? न्यायालय जबाव दो....डा. सेन को आजीवन कारावास क्यों

         अभिव्यक्ति पर करारा चोट ,मौलिक अधिकार का हनन ,प्रजातंत्र का गला घोटने वाला देशद्रोही नहीं है, वल्कि अधिकार के लिए लड़ने  वाले देशद्रोही है। न्यायालय द्वारा डा.विनायक सेन ,नारायण सन्याल, और पीजूश गुहा को छत्तीसगढ विशेष  जन सुरक्षा अधिनियम के तहत राष्ट्रद्रोह  की साजिश  का आरोप लगाकर आजीवन कारावास का सजा सुना दिया गया । न्यायालय प्रसाशन  और भाई भतिजेवाद से आज अछुता नहीं रह गया है , इसी सत्य को सर्वोच्च न्यायालय ने बार बार कहती है ,जब न्याय व्यावस्था में खामियॉं है, तो कैसे मान लिया जाए कि राज्य में थौपा गया विशेष  जन सुरक्षा कानुन के तहत डा सेन एवं अन्य पर न्याय वाध्यकारी  है ? डा. सेन  विशेष  जन सुरक्षा अधिनियम का शुरू  से ही विरोध करते रहे है और  यह भी शंका  जाहिर करते रहे कि हो न हो आगे जाकर अधिनियम के तहत  जनता के आवाज को दवाने में इसका गलत उपयोग किया जाएगा । 
दिनांक 24.12.2010 के दिन छत्तिसगढ के इतिहास को काला दिन के रूप में अंकित किया जाएगा ,संसद पर हमला करने वाले देश  के लुटेरे ,प्लेन हाईजैक  करने वाले, अरबों का  घोटाला करने वाले ,वेदेशी  ताकतों और उनके टुकड़ों  पर पलने वाले, भोपाल गैस त्रासदी के मुख्यआरोपी एण्डरसन को अमेरिका में सुरक्षित छोड़ने  वाले ,जेसिका लाल हत्याकाण्ड के आरोपी ,1.76 लाख करोड़  के घपले बाज ,विदेशी बैंकों  में जमा काले कमाई वालों का लगभग 300 लाख करोड़  रूपये जमाखोर इस देश में  देशद्रोही  नहीं है, पर अधिकार की लड़ाई  लड़ने  ,गरिबों की आवाज उठाने वाले,निःस्वार्थ भाव से जनसेवा करने वाले देशद्रोही है। 

रायपुर के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश  न्यायमूर्ति बीपी वर्मा ने कानुन किया होगा.. पर न्याय नहीं । कानून बजाना और न्याय करना दोनों बहुत दुर का रिस्ता है। न्याय दिखना और महशुस किया जाना भी आवश्यक है। 

मैं यह मानता हूँ  कि आज नक्शली  जिस तरह से जंगली वार कर रहा है और शंका  के आधार पर आदिवासीयों का हत्या कर रहा है वह किसी भी तरह सहानुभूति और सहयोग योग्य नहीं है ,मैं व्याक्तिगत रूप से हिंसा का घोर विरोधी हूँ ,छोटी- छोटी बातों पर या मतभीन्नता के कारण किसी को मौत  के घाट उतार देना, किसी समस्या का समाधान नहीं है। पर डा.सेन पर यह आरोप कि वे नक्शली गतिविधियों में लिप्त है। यह सरासर असत्य है , वर्तमान समय तो सत्य को सत्य साबित करना बहुत कठीन है ,परन्तु गलत को सच साबित करना बहुत आसान है , हमारी  न्याय व्यावस्था में ही अनेक खामियां है, जिससे आज न्याय पाने की कल्पना करना व्यार्थ है ,कुछ एक अपवाद को छोड़  कर यह व्यावस्था जनता को दुःख और अन्याय ही थौपता है।

अनेक संवैधानिक जानकारों का कहना है कि छत्तीसगढ विशेष  जन सुरक्षा कानून ही असंवैधानिक है अतः इस कानून की तहत दिया गया फैसला अपने आप में अमान्य योग्य है। इस प्रकार के मत दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति राजिंदर सच्चर जी ने डा. सेन के आजीवन कारवास के प्रकरण पर अपना मत व्यक्त करते वक्त यह फैसला चौकाने वाला भी बताया है 1। 

मेरे लैपटॉप में अनेक प्रकार के लेख और भावना लिपिबद्ध है क्या कल इन लेख और भावना के अभिव्याक्ति को आधार बना कर मुझे भी देशद्रोही  करार दिया जा सकता हैं  ? प्रजातांत्रीक देश  में यह चलने  वाला  नहीं है , देश  के सभी मानव अधिकार से जुड़े  लोगों को ,संगठनों को , एक मत होकर पिछले जमानत के समय से भी अधिक जागरूकता के साथ इस अन्याय के विरोध में सामने आना होगा और खुलकर सामने आना होगा ,ताकि आगे इस तरह की विषेश अधिनियम के आड में मौलिक अधिकारों का हनन न हो सकें ।



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