शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

नापसंद भी करें

यह सीख हमेशा से दी जाती रही है कि हमें अपने मन में बुरे विचार नहीं लाने चाहिए। वह आदमी बहुत अच्छा माना जाता है जो हर चीज को अच्छा कहता है। यह वाकई सकारात्मक नजरिए का लक्षण है। आखिर हम गलत क्यों सोचें। लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं कि पसंद और नापसंद की विभाजक रेखा ही मिट जाए।

कहीं ऐसा न हो कि सकारात्मक बनने का हम पर इतना दबाव हो जाए कि हम अपनी विश्लेषण क्षमता ही खो दें और आंख मूंदकर हर चीज को स्वीकार करते जाएं। नहीं, हमें यह मालूम होना चाहिए कि हमें क्या चाहिए और क्या नहीं चाहिए। हमारे मन में हमेशा एक विभाजक रेखा होनी चाहिए जिससे यह तय हो सके कि अमुक बात हमारे लिए अच्छी है और अमुक बुरी।

हमें अस्वीकार करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए और किसी चीज को गलत ठहराने का साहस भी रखना चाहिए। यह दुनिया तभी आगे बढ़ी जब कुछ लोगों ने प्रचलित मानदंडों को नापसंद किया और नए रास्ते ढूंढे। इसलिए अपनी पसंद के साथ अपनी नापसंदगी का भी ख्याल रखें।

संजय कुंदन 

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